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श्रद्धांजलि- गोकरण नाथ तिवारी ( १९४०-२०२१)

June 4, 2021

गोकरण नाथ तिवारी का उपनाम रज्जन था. इनके जन्म के पीछे मेरी दादी श्रीमती राम प्यारी मिश्र हाथ रहा.

विस्तार से कहानी इस प्रकार है:-

मेरे नाना पंडित जय नारायण तिवारी विधुर हो गए थे; उनके दो बेटियां थी . बड़ी बेटी किशोरी देवी के विवाह के लिए वे प्रस्ताव लेकर इलाहाबाद आये और मेरी दादी श्रीमती राम प्यारी मिश्र मिले. वे मेरे पिताजी गिरिजा शंकर मिश्र को बचपन से हमीरपुर से जानते थे मेरे पर बाबा श्जरी बेनी प्हाँरसाद मिश्र कानूनगो के पद पर नियुक्त थी . जय नारायण तिवारी के ससुर डॉ हर नारायण बाजपेयी कानपुर से छुट्टियाँ मनाने जाते थे. बड़े लोग आपस में बातचीत किया करते थे – यमुना जी के किनारे – और बच्चे लोग – मेरी माँ और पिता जी – बालू से खेलते थे और खेल खेल में में पिताजी मेरी माँ की आँखों में बालू डाल देते थे, और उनके सुन्दर बालो को भी खींचा करते थे.

सब से पहला प्रश्न मेरी दादी ने पूछा, तिवारी जी आप विधुर हैं और आपकी पत्नी नहीं हैं तो मैं किसके साथ बात बात करूंगी : पहले आप अपना विवाह कीजिये, अभी आप जवान हैं . तब आपकी पत्नी मेरी समधिन लगेंगी और मेरा उनका सम्बन्ध होगा. इसके अतिरिक्त आपके कोई बेटा नहीं है. संतान पैदा कीजिये जिस से आपका वंश चले.

दादी की बात : “बेटी के विवाह के पहले आप अपना विवाह कीजिये” – नाना जी को लग गयी. वापस कानपुर आने के बाद तुरंत उन्होंने अपना विवाह किया और पुनः अपनी बेटी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मेरी दादी को शुभ समाचार देने आये. इस तरह मेरी माँ का विवाह संपन्न हुआ तब उनकी उम्र मात्र १५ वर्ष की थी, वे पिता जी से ४ साल छोटी थी.

१४ जुलाई १९३९ को मेरा जन्म हुआ और ६ महीने के बात जनवरी १९४० में गोकरण नाथ तिवारी इस धरती पर पधारे. उम्र में वे मुझसे छोटे थे पर पद में बड़े. हम दोनों – मामा भांजे में ख़ूब बनती थी.

रज्जन मामा को नींद बहुत प्यारी थी. अलार्म लगा कर सोते थे और थोड़ी देर में अलार्म बंद हो जाती थी और मामा सोते रहते थे – हम मजाक में कहते थे कि यह कुम्भ कर्ण की नींद है. तकनीकी दिमाग लगा कर मामा ने घड़ी को ऐसा बनाया कि बिजली से अलार्म चले और घंटी बजती रहे जब तक कि मामा की नींद अच्छी तरह न खुल जाए और वे अलार्म को बंद खुद करें.

एक ट्रेनिंग के लिए मामा को कलकत्ते जाना पडा. बंगाल में सभी चीजो में मछली डाल देते हैं यहाँ तक कि चावल में भी. तो मामा स्वयं भोजन बनाते थे. कुछ समय के बाद मुझे भी कलकत्ता प्रशिक्षण के लिए जाना पडा. मामा ने मुझसे कहा कि मिट्टी के तेल का स्टोव लेते जाना और खुद खाना बनाना. मैंने वैसा ही किया और खुद के अलावा अपने सहपाठियों के लिए भी प्रति सप्ताह मैं भोजन बनाया करता था.सभी चीज़े; जैसे कि पूड़ी, पराठा, रोटी, चावल, दाल, सब्जी – और मेरे मित्र बड़े चाव से खाते थे.

मामा ने पेंट बनाने का प्रशिक्षण कानपुर की प्रसिद्द संस्था में लिया और बाद में पढने के लिए मामा लन्दन गए. मामा पक्के शाकाहारी थे.

जब मैं ज़ाग्रेब विश्वविद्यालय , यूगोस्लाविया में शोध कर रहा था, मामा मुझे मिलने ले लिए एक सप्ताह हमारे घर में रुके. घर में सोने के लिए सिर्फ दो पलंग थे. एक में मेरी श्रीमती जी और पुत्र सोते थे, और दूसरे पलंग पर मामा के साथ मैं सोता था. यह मामा – भांजे का प्रेम एक् सप्ताह चला. यह सन १९६८ की बात थी और यूगोस्लाविया में ठंडक बहुत पड़ा करती थी. मामा ने मेरी श्रीमती जी कोा बताया कि वे एक शाकाहारी अँगरेज़ युवती से सम्बन्ध करना चाहते हैं यदि भारत में उनके माता पिता सहमति दें तो. पर मेरे नाना जी बड़े कट्टर विचारों के थे, और मामा ने फिर उस युवती के साथ विवाह सम्बन्ध की बात त्याग दी.

मामा ने कानपुर में काफी समय काम किया, और जब मैं सन २००१ में भारत आया तो उनके मिलने के लिए उनके नए घर में रुका.

मामा ने मेरा बहुत सत्कार किया हालांकि कि वे विधुर का जीवन बिता रहे थे. उन्हों ने सब प्रकार की  व्यवस्था  कर रखी थी, नौकर चाकर, खाना बनाने के लिए एक महिला और सफाई के लिए एक और जो सपरिवार वही घर में रहती थी. मुझे मामा ने निर्मला मौसी से मिलवाया. हम उनको डॉ भरद्वाज के अस्पताल में ले गए और बाद में वापस जाने के दिन अपने फूफा और बुआ जी से मिलवाया. वही से मामा ने मुझे रेलवे स्टेशन  अपनी कार से पहुंचाया . रास्ते में भीड़ बहुत हो गयी थी और जब हम स्टेशन पहुंचे तो गाडी चल चुकी थी. कुली बहुत चतुर था और सावधानी के साथ उसने चलती गाडी में बिठवा दिया. यह मेरा मामा से अंतिम बार साक्षात मिलन था.

मेरे सुपुत्र सोम अक्षय मिश्र  और उसकी धर्म-पत्नी विनीता गेब्रियल ने मामा के साथ अच्छा सम्बन्ध रखा और वे दोनों  दिल्ली में मामा के लड़के के विवाह में सम्मिलित हुए थे. मेरी बहन शरद तिवारी और बहनोई  डॉ विनोद तिवारी विलायत में रहते थे और उन्होंने मामा के साथ बहुत समय बिताया .

सभी बहने मामा  को बहुत प्रिय थी : डॉ किरण शुक्ल , बहनोई दया प्रकाश शुक्ल जब कानपुर में थे तो अक्सर मिला करते थे.

अपने जीवन के अंत समय में , अवकाश प्राप्त होने के बाद मामा को पार्किन्सन की बीमारी हो गयी. मैंने उनको उपचार के लिए गो-मूत्र पीने का इलाज बताया . मामा ने साफ़ मना कर दिया . अभी दो महीने पहले मैंने मामा के साथ विडियो से बातचीत की थी. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है. इस बार फिर उनको गो-मूत्र की टिकियाँ खाने के लिए इलाज़ बताना चाहता था. पर कई बार हम दोनों ने प्रयास किया लेकिन दोबारा बातचीत नहीं हो सकी.’

गोकरण नाथ तिवारी ने गोलोक की यात्रा २७ मई २०२१ को पुणे , महाराष्ट्र में शरीर त्यागा.