मोहनदास करमचंद गाँधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी के रूप में विनोबा भावे का नाम सर्व प्रथम आता है. यह समझने की बात है कि महात्मा गांधी गृहस्थ थे जब कि विनोबा भावे एक बाल ब्रह्मचारी थे. अहिंसा आन्दोलन और भूदान से विनोबा का नाम जुड़ा है.सर्वोदय आन्दोलन में भूदान का बड़ा भाग है और विनोबा भावे के नारे “जय जगत ” से सम्पूर्ण संसार की विजय का आभास होता है. जब गाँधी जी ने सत्याग्रह आन्दोलन १९४० में शुरू किया था तो विनोबा भावे को पहला सत्याग्रही चुना था. विनोबा जी ने १९५१ में देश की पद-यात्रा शुरू की और अमीरों से जमीन लेकर गरीब परिवारों को बांटी- इस आन्दोलन को भूदान के नाम से जाना जाता है.
शिक्षा के क्षेत्र में विनोबा भावे ने देव-नागरी लिपि का सुधार किया . अदि शंकराचार्य , बाइबिल, कुरान आदि ग्रंथों तथा दर्शनों पर पुस्तकें लिखी. संत ज्ञानेश्वर पर विनोबा भावे की टिप्पणियों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. डाकुओं से शस्त्रास्त्रों का समर्पण करवाना उनकी आध्यात्मिक शक्ति की विशेष उपलब्धि थी।
१९५९ में पवनार, महाराष्ट्र में ब्रह्म विद्या मंदिर की स्थापना की ताकि महिलायें अपनी सहायता स्वयं कर सकें और अपने उपयोग के लिए वस्तुओं का उत्पादन, निर्माण भगवद गीता के सिद्धांतों के अनुसार कर सकें. प्रातःकाल इशोपनिषद के श्लोक पाठन के बाद विष्णु सहस्रनाम और सायंकाल श्रीमद भगवद गीता का पठन -पाठन. दिन में खेती के लिए पुरातन ढंग से बैलों का उपयोग – ताकि अपनी जरूरत के लिए सब्जियां और अन्न उगाया जा सके. कपडे और खादी को खुद बिन कर सिल कर अपनी जरूरतें पूरी करना.
भगवद-गीता का अनुवाद मराठी भाषा में १९३२ में विनोबा जी ने किया और कालान्तर में इस पुस्तक का अनुवाद १८ भारतीय और ४ विदेशी भाषाओं में हुआ. १९५३ में विनोबा भावे प्रयागराज आये थे और उनके भाषण ने मुझे प्रभावित किया. जिन लोगों ने “गीता प्रवचन” खरीदी थी, उस पुस्तक पर विनोबा जी ने स्वयं हस्ताक्षर किया था. तब मेरी अवस्था १४ वर्ष की थी और मेरे मझले चाचा जी ने मुझे विनोबा जी से मिलवाया था. गांधी जी की “आत्म-कथा” को मैंने आद्योपांत ९ वर्ष की अवस्था में पढ़ा था और अपने को धीरे धीरे गांधीवादी विचारों से प्रभावित किया था. जब मैं स्नातक की पढाई के लिए यूइंग इसाई विद्यालय में भरती हुआ था तो मेरे अध्यापक पंडित राम किशोर शर्मा जी ने गर्मी की छुट्टियों में मुझे दो स्कूलों को देखने के लिए दो गावों में भेजा था – इनकी स्थापना में शर्मा जी का योगदान था. शर्मा जी ने मुझे “गाँधी पुस्तकालय” के निर्माण में लगाया जो कि बाद में केन्द्रीय पुस्तकालय का एक भाग बन गया.
हालाकि मैंने नौ-शिल्प की तकनीकी शिक्षा भारतीय प्रयुक्ति विद्या प्रतिष्ठान [ आई आई टी ] खड़गपुर से ग्रहण की थी और भारत के प्रथम जहाज कारखाने ” हिंदुस्तान शिपयार्ड , विशाखापत्तनम में कार्य भी करता था – एक प्रश्न मुझे हमेशा कुरेदता था- मैं कौन हूँ और क्या मुझे भगवद–साक्षात्कार हो सकता है? फलतः २५ वर्ष की अवस्था में मैं विनोबा भावे से मिलने पवनार गया- जो कि नागपुर के समीप था. भूदान आन्दोलन के सिलसिले में एक सप्ताह पद यात्रा में भाग लिया और विनोबा जी से मैंने उनके आन्दोलन में सम्मिलित होने का निवेदन किया. उस समय बाबा के आश्रम में १५ दिनों के लिए गोपाल बजाज भी आये थे. कई युवतिया भी थी जिनमे से एक का नाम “कालिंदी” था – ये सब लोग नित्य सस्वर इशोपनिषद तथा अन्य गीता के श्लोको का पठन – पाठन करते थे, और इस प्रार्थना -” ॐ तत सत “का सुबह सस्वर पाठ करते थे :-
ॐ तत्सत्श्री नारायण तू पुरुषोत्तम गुरु तू ! सिद्ध बुद्ध तू स्कन्द विनायक सविता पावक तू !! ब्रह्म मज़्द तू यह्व शक्ति तू एसु पिता प्रभु तू ! रूद्र विष्णु तू राम कृष्ण तू रहीम तो तू !! वासुदेव गो विश्व रूप तू चिदानन्द हरि तू। अद्वितीय तू अकाल निर्भय आत्म लिंग शिव तू !!
एक दिन प्रातःकाल में भ्रमण के समय “बाबा” से साक्षात्कार किया और कोई दस प्रश्न पूंछे. कुछ प्रश्न व्यग्तिगत थे – कैसे यह तय करें कि कौन काम पहले और कौन सा काम बाद में? क्या मैं आपका शिष्य बन सकता हूँ और पूरी तरह से भूदान आन्दोलन में शामिल हो सकता हूँ ? बाबा, क्या आपने भगवद दर्शन किया है – उत्तर हाँ या न में दें. मन को कैसे स्थिर -शांत किया जा सकता है? उल्लेखनीय है कि सारे आश्रमवासी विनोबा जी को ” बाबा” के नाम से संबोधन करते थे. साक्षात्कार के समय बाबा ने सारे प्रश्न सुने और कहा कि उनके सचिव सभी प्रश्नों के उत्तर लिख कर मुझे दे देंगे. दोपहर के बाद बाबा ने मुझे अपने कमरे में बुलवाया और सभी प्रश्नों के उत्तर लिखकर दिए और कहा कि मैं उनपर मनन करूँ. ९० दिनों के बाद मुझे भी भगवद -दर्शन हो जायेंगे. रहा कि कौन काम पहले करें और कौन बाद में- बाबा ने कहा कि जो सब से आवश्यक लगे उसको पहले और जो उतना जरूरी न लगे उसको बाद में. चूँकि मैंने तकनीकी शिक्षा ग्रहण की थी और पानी के जहाज बनाए का काम विशाखापत्तनम में करता था, बाबा ने सलाह दी कि उसी काम में लगे रहो- और समुद्र की लहरों से शिक्षा लो कि कैसे निरंतर अपने को काम में लगा सको. बाबा ने मुझसे यह प्रश्न किया कि क्या हम घरवालों के बता कर बाबा से मिलने आये हैं? मैंने उत्तर दिया के सभी मुझे ” विनोबा का चेला ” कहकर बुलाते हैं- और बाबा आप निश्चिन्त रहें. मेरे इस प्रश्न का उत्तर – क्या बाबा आपने भगवद-दर्शन किया है- हाँ या न- न बाबा और न उनके सचिव ने दिया. कहा कि तुम्हे स्वयं ९० दिनों के बाद भान हो जाएगा.
उन्ही दिनों भारत में अगले चुनाव की तैयारिया हो रही थीं . कुछ संस्थाएं , जैसे कि अमरीकी गुप्तचर संस्था CIA जवाहर लाल नेहरु के विरोध में थीं और चाहती थीं कि चुनाव में नेहरु हार जाएँ. शायद उन्ही विरोधियों में से एक प्रोफेसर कनाडा से आये थे और बाबा से मिले. इस साक्षात्कार में मुझे भी शामिल किया गया. प्रोफेसर ने कश्मीर समस्या के बारे में चुनाव plebisite हो- यह प्रश्न पूछा. उस समय भारत – पाकिस्तान में राजनीतिक तनाव था – युद्ध की तैयारीं भी होती रहती थी – कश्मीर के मुद्दे को लेकर. बाबा ने उत्तर दिया कि यदि जनमत चाहता है कि कश्मीर में चुनाव plebisite हो तो भारत सरकार को उसे नहीं रोकना चाहिए. मुझे निर्देश दिया गया कि कश्मीर समस्या के बारे में बाबा के क्या विचार हैं – यह जानकारी मुझे अखबारों को बताने की जरूरत नहीं- गुप्त रहनी चाहिए. निर्देशानुसार मैंने इस बात की चर्चा कभी भी और किसी ने नहीं की.
विनोबा भावे से अगले वर्ष फिर मिलने गया तब वे अस्वस्थ थे. उनके प्रसिद्ध अनुयायी सुरेश भाई मुझे मिले थे. उन्हें बहुत प्रसन्नता हुयी यह जान कर कि मैं बाबा से पिछले वर्ष मिल चुका हूँ.
कालान्तर में मुझे मन की शांति मिली पर भगवद दर्शन श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों को पढ़कर तथा भक्तो के सत्संग और साधुओं की सेवा करके प्राप्त हुआ. धर्म शास्त्रों में भगवद गीता, श्रीमद भागवतम और चैतन्य चरितामृत प्रमुख है- कीर्तन और जाप मेरी साधना के अंग है तथा पिछले ११ वर्षो से गोशाला खोलकर गायों की सेवा करके अहिंसा धर्म को अमरीकी समाज में आगे बढाया है.
यह उल्लेख करना आवश्यक है: ” इतने योग्य बनो कि भगवान् तुम्हे देखने आयें “.
महा मन्त्र के जाप से कलियुग में यह सुलभ है : हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!